परि के इस आवरण का तुमने है यह क्या किया ?
उसने ही नही, सबने है नुकसान किया !
आज धूंआ-धूंआ मचा रखा है,
कल को राख ख़ुद बन जाएगा ।
आग लगी उन खेतों मे,
धूंआ फिर मेरे पर क्यो छा गया ?
धूल-मिट्टी तुम उड़ाओ,
मुझे बस काला ही बनाओं ।
मेंने तो पेड़-पौधों से साझा किया,
तुम तो उन्हें भी उड़ा ले गए !
मेट्रो को महंगा किया, यमुना को बर्बाद किया,
मेरी इस खस्ता हालत पर ध्यान कम दिया ।
अब लुटीयन के ही कोने में बची हु मैं,
पालम, शाहदरा में आकर मिलों कभी !
एक दिन मेरा भी आएगा,
आँख-नाक जलेंगे, दम भी निकल जाएगा ।
पर तुम कभी न सुधरें थे, न सुधर पाओगे,
मैं पशु-फल-फूल की भी हुँ, तुम कभी न समझे थे, न समझ पाओगे !
उसने ही नही, सबने है नुकसान किया !
आज धूंआ-धूंआ मचा रखा है,
कल को राख ख़ुद बन जाएगा ।
आग लगी उन खेतों मे,
धूंआ फिर मेरे पर क्यो छा गया ?
धूल-मिट्टी तुम उड़ाओ,
मुझे बस काला ही बनाओं ।
मेंने तो पेड़-पौधों से साझा किया,
तुम तो उन्हें भी उड़ा ले गए !
मेट्रो को महंगा किया, यमुना को बर्बाद किया,
मेरी इस खस्ता हालत पर ध्यान कम दिया ।
अब लुटीयन के ही कोने में बची हु मैं,
पालम, शाहदरा में आकर मिलों कभी !
एक दिन मेरा भी आएगा,
आँख-नाक जलेंगे, दम भी निकल जाएगा ।
पर तुम कभी न सुधरें थे, न सुधर पाओगे,
मैं पशु-फल-फूल की भी हुँ, तुम कभी न समझे थे, न समझ पाओगे !
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