जिंदगी की इम्तेहाऩ तो बहोत हुई, बन्ना !
शिकस्त मिली तो भी धीरे धीरे |
वो बेमाया-ओ-असबाब तो ऐसे ही बन बैठे,
जैसे ढो रहे हो गम़ दुनिया की तन्हाईयों का |
जीना जमाने में कुछ खास नही है ए- बन्ना !
दुनिया में हम तो बस तन्हा ही रह गए |
बोले, तुम हो मुसाफ़िर इस समंदर के,
डूबना तो कभी बनता नही तुम्हारी फ़ितरत में |
क्या करे इस दुनिया ने बे़गाना कर दीया,
अपनो ने ही बन्ना ! अफसाना कर दीया |
करो एक फसाना तुम भी इस जमाऩे मे !
झुके लोग, झुके दुनिया; तुम्हें भी बनाये वो बन्ना |
शिकस्त मिली तो भी धीरे धीरे |
वो बेमाया-ओ-असबाब तो ऐसे ही बन बैठे,
जैसे ढो रहे हो गम़ दुनिया की तन्हाईयों का |
जीना जमाने में कुछ खास नही है ए- बन्ना !
दुनिया में हम तो बस तन्हा ही रह गए |
बोले, तुम हो मुसाफ़िर इस समंदर के,
डूबना तो कभी बनता नही तुम्हारी फ़ितरत में |
क्या करे इस दुनिया ने बे़गाना कर दीया,
अपनो ने ही बन्ना ! अफसाना कर दीया |
करो एक फसाना तुम भी इस जमाऩे मे !
झुके लोग, झुके दुनिया; तुम्हें भी बनाये वो बन्ना |
Masttt
ReplyDeleteDhanywad Anuragee ji :-)
ReplyDeleteAap tareef ke kaabil hai bhai
DeleteJese ki aap h wese hi hum bhi kuchh krne ka prayas kr rhe h
DeleteThis comment has been removed by the author.
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