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राही तेरी राह

चलता रहेता तु ही है राही,
पर मैंने भी चलना है जाना |
दूर से दिखाई दे रहा है वह,
मकसद मेरा सिर्फ उसको है पाना ||

अड़ग राह की यह मंजिल है,
सात समंदर सा यह अंतर है |
जिंदगी का उफान यह दुवीधा सा,
देशभक्त दिवाना मेरा देश अैसा ||

बुलंदीयो को है एक बार छुना,
पर ना कभी उससे मुकरना |
ले जाऊँगा एक दिन मैं उसे आगे,
भले पथ पर हो मुश्केली सदासे ||

आशाऐं बहोत है तुमसे एे-दोस्त,
तुम ही तो हो मेरे ऐ-सरफरोश !
दास्ताँन लिखी जाएगी एक बार,
इस लिए जिना हैं हमें बार बार ||

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Revolution of Delhi University

            Should I have use the word "BIFURCATION" for this controversy of FYUP ? Bifurcation between VC and his team & Teachers Association and the principals of at least 57 colleges.Actually, what the vice-Chancellor has to do that he had done and he is very right on his own view. Anyone can't think like the Revolutionary VC of Delhi University.                                                Dinesh singh, who want to give some extraordinary knowledge to students by such a good idea of FYUP. But no one understand what he want to say because of his typical point of FYUP or anything else ? The student of Delhi university want to take knowledge which is variable and different at some point by any other University. Central University should do like that to improve their knowledge power between Teacher-Student relationship. Four year...

न जाने ! अैसा क्यों हुआ ?

आज फिर मन मे एक आग लगी, न जाने अैसा क्यों हुआ ? बात करने की मेरी उससे आरजू जगी, न जाने अैसा क्यों हुआ ? जहाँन मे आकर वो दूर चला गया, लेकीन इतना भी दूर ना हुआ | पास रहकर ही मुझे है सताया, न जाने अैसा क्यों हुआ ? उढते-जागते, चलते-ऊछलते, तुम ही मेरे हमसफर बन रह गऐ | आज दूर जाने की फिर तमन्ना है जगी, न जाने अैसा क्यों हुआ ? बातो ने तेरी मुझे हसाया, रूलाया भी उन्होने ही है मुझे | पर न जाने आज ये लिखने का मन कर रहा, न जाने अैसा क्यों हुआ ? यह दिल ही तो है जो सँभला है, पर तेरी यादों ने ये क्या किया ? गिला है , शिकवा है किन्तु कोई ना दुश्मनी, पर फिर भी ! न जाने अैसा क्यों हुआ ?

सोच ( आजादी है )

ईधर में देखता हूं, क्या हो रहा है वो तो महिलाओं पे कुछ बोल, चूप हो रहा है । वो सोच मैं सिमट गया, सोच में की और क्या वो फिर खडे हुए, और धर्म पर भी फूंक दिया !! किंतु मैं तो हु आम आदमी, बुद्धिजीवी सी न क्षमता मुझमें, वो जो-जो बोल जाएंगे, मेरे तो अच्छे दिन उसी से आएंगे   । ना देख मैं दंग रहा, ना सोच ये मैं तंग रहा, आखिर देश ही न सोच पाया, तो मैं क्या खाक सोचूंगा   ? बातें बतियाते वो दिल्ली से दुनिया की, और फिर वो गाते मंगलयान की   ! सोचा उन दिनों क्या हुआ, जब वो बीते सत्तर साल थे, आजादी तो तब आई जब चौदह में वो आए थे !! पर फिर से देश बट गया, जनमत में ही वो कट गया, आज है धर्म से, तो कल वो वर्ण से ज्ञात है । बोलने की अब कहा मुझमें तमन्ना रही, वो बस अब मेरे मन में हैं, जो सुन के भी न सोच पाया, क्या वही देश का जन-मन हैं  ??