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Showing posts from October, 2015

राही तेरी राह

चलता रहेता तु ही है राही, पर मैंने भी चलना है जाना | दूर से दिखाई दे रहा है वह, मकसद मेरा सिर्फ उसको है पाना || अड़ग राह की यह मंजिल है, सात समंदर सा यह अंतर है | जिंदगी का उफान यह दुवीधा सा, देशभक्त दिवाना मेरा देश अैसा || बुलंदीयो को है एक बार छुना, पर ना कभी उससे मुकरना | ले जाऊँगा एक दिन मैं उसे आगे, भले पथ पर हो मुश्केली सदासे || आशाऐं बहोत है तुमसे एे-दोस्त, तुम ही तो हो मेरे ऐ-सरफरोश ! दास्ताँन लिखी जाएगी एक बार, इस लिए जिना हैं हमें बार बार ||

न जाने ! अैसा क्यों हुआ ?

आज फिर मन मे एक आग लगी, न जाने अैसा क्यों हुआ ? बात करने की मेरी उससे आरजू जगी, न जाने अैसा क्यों हुआ ? जहाँन मे आकर वो दूर चला गया, लेकीन इतना भी दूर ना हुआ | पास रहकर ही मुझे है सताया, न जाने अैसा क्यों हुआ ? उढते-जागते, चलते-ऊछलते, तुम ही मेरे हमसफर बन रह गऐ | आज दूर जाने की फिर तमन्ना है जगी, न जाने अैसा क्यों हुआ ? बातो ने तेरी मुझे हसाया, रूलाया भी उन्होने ही है मुझे | पर न जाने आज ये लिखने का मन कर रहा, न जाने अैसा क्यों हुआ ? यह दिल ही तो है जो सँभला है, पर तेरी यादों ने ये क्या किया ? गिला है , शिकवा है किन्तु कोई ना दुश्मनी, पर फिर भी ! न जाने अैसा क्यों हुआ ?

भारतवर्ष

रक्त-रंजीनी आज फिर है सजी, शृंग-गर्त सी धून मन में है बजी | खड़ग के खयाल ने है यह पाया, बंदूक से उस खून को था खोया || मासूमीयत सी मुश्कान मे भी मिली, घडी़ संकट कू आज है टली | शत्रु ने भी जाना है आज यह मूल्य, घबराये तुम तो हम भी हैं अतुल्य || भारतवर्षे विनम्रता, विविधता, विशेषता, ह्रदय के टुकडे सी है यही कोमलता | अनेक को जाना, पर मिला ना एक, राष्ट्र ही हो वह, किन्तु हजारों मे नेक ||