ईधर में देखता हूं, क्या हो रहा है वो तो महिलाओं पे कुछ बोल, चूप हो रहा है । वो सोच मैं सिमट गया, सोच में की और क्या वो फिर खडे हुए, और धर्म पर भी फूंक दिया !! किंतु मैं तो हु आम आदमी, बुद्धिजीवी सी न क्षमता मुझमें, वो जो-जो बोल जाएंगे, मेरे तो अच्छे दिन उसी से आएंगे । ना देख मैं दंग रहा, ना सोच ये मैं तंग रहा, आखिर देश ही न सोच पाया, तो मैं क्या खाक सोचूंगा ? बातें बतियाते वो दिल्ली से दुनिया की, और फिर वो गाते मंगलयान की ! सोचा उन दिनों क्या हुआ, जब वो बीते सत्तर साल थे, आजादी तो तब आई जब चौदह में वो आए थे !! पर फिर से देश बट गया, जनमत में ही वो कट गया, आज है धर्म से, तो कल वो वर्ण से ज्ञात है । बोलने की अब कहा मुझमें तमन्ना रही, वो बस अब मेरे मन में हैं, जो सुन के भी न सोच पाया, क्या वही देश का जन-मन हैं ??