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Showing posts from November, 2015

बन्ना का ज्ञान

जिंदगी की इम्तेहाऩ तो बहोत हुई, बन्ना ! शिकस्त मिली तो भी धीरे धीरे | वो बेमाया-ओ-असबाब तो ऐसे ही बन बैठे, जैसे ढो रहे हो गम़ दुनिया की तन्हाईयों का | जीना जमाने में कुछ खास नही है ए- बन्ना ! दुनिया में हम तो बस तन्हा ही रह गए | बोले, तुम हो मुसाफ़िर इस समंदर के, डूबना तो कभी बनता नही तुम्हारी फ़ितरत में | क्या करे इस दुनिया ने बे़गाना कर दीया, अपनो ने ही बन्ना ! अफसाना कर दीया | करो एक फसाना तुम भी इस जमाऩे मे ! झुके लोग, झुके दुनिया; तुम्हें भी बनाये वो बन्ना |